मैंने हमेशा सोचा है,
क्यों मैं उनके ख़्वाब बुनूँ?
क्यों मैं उनकी सोच सजूँ?
क्यों मैं उनके कहे चलूँ?
क्यों मैं उनकी रीत रचूँ?
क्यों?
आख़िर मेरी भी इच्छा है;
मेरी भी तो जिज्ञासा है।
मेरे अपने कुछ क़िस्से हैं,
जो मुझे ही के हिस्से हैं।
फिर मैं क्यों कोई बोझ सहूँ?
क्यों मैं उनकी बात सुनूँ?
मैंने सोच लिया था,
बेटा केवल अपनी सुनना।
न तू किसी के भ्रम में गुमना।
ये उनकी मोहमाया है,
जो जीवन जी न पाया है।
तू बेफ़िक्र चलना,
बेशक कभी न वापस मुड़ना।
उस सूरज ने सब जग देखा है,
तू सब जग से किरणें चुनना,
हर पग तू बस आगे बढ़ना,
बेशक कभी न पीछे मुड़ना।
(फिर हमने)
ख़ुद से जब ये बात कही,
दिल में एक आस जगी
जब नहीं किसी ने रोका है,
तो जग सारा इक मौका है।
बस फिर क्या था
निकाल पड़ा मैं,
मनमानी करने।
सारे जग…
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